November 22, 2015
Jamidaar Ke Alsi Baite Story In Hindi.ज़मीदार के आलसी बैठे
moral story of jamindar in hindi
एक गांव में एक जमींदार रहता था, वह बहुत धनी था, वो अपने जीवनकाल में बहुत सारा धन अर्जित कर लिया था व आने वाली पीढ़ी के लिए संजोकर रखा था।
जमींदार के तीन बेटे थे, जमींदार ने उनको कभी किसी बात के लिए समझाया नही, रोका- टोका नही ,
इसके चलते उनके तीनो बेटो की प्रवृत्ति बेहद आलसी व घुमक्कड़ हो गई थी। जमींदार ने अपने तीनो बेटो की शादी करा दी यह सोंचकर कि जिम्मेदारी आएगी लेकिन उनके बेटो के रवैये में कोई सुधार नही हुआ। अब जमींदार बहुत चितिंत रहने लगा कि उसके जाने के बाद क्या होगा लेकिन जमींदार की पत्नी को कोई चिंता नही थी क्योकि उसे लगता था कि जमींदार द्वारा संजोए हुए धन – दौलत से यह जिंदगी आराम से कट जाएगी।
एक दिन जमीदार की मृत्यु हो गई और सारी जिम्मेदारी जमींदार की पत्नी पर आ गई, लेकिन जमींदार की पत्नी तो निश्चिंत थी, उसे अपने व अपने बेटो की कोई चिंता फिक्र नही थी क्योकि उसे तो अपने पति द्वारा संजोए हुए धन – दौलत पर बड़ा गुमान था। जमींदार की पत्नी रोज रात को बहु – बेटो को अपने कमरे में बुलाकर पुछती – दिन कैसा गया, खाना, कपड़ा सब अच्छा रहा कि नही आदि। जमींदार की छोटी बहु बहुत होशियार थी, वो अपने पति व बाकी घरवालो के आलसीपन से नाखुश थी और उसने सबको सुधारने का प्रण किया। रोज की तरह जमींदार की पत्नी ने बहुओ और बेटों को अपने कमरे में बुलाया और पुछने लगी सब कैसा था, तो तीनो बेटे और दोनो बहु ने कहा – सब अच्छा था , कुशल मंगल से दिन भी निकल गए लेकिन जब छोटी बहु का उत्तर देने का समय आया तब वो बोली – मां जी बासी खाया, बासी पहना, जैसे – तैसे दिन भी कट गया। कुछ दिन तक यहीं प्रश्न – उत्तर चलता रहा। एक दिन जमींदार की पत्नी ने छोटी बहु से कहा कि – तुम्हे यहां किस चीज की कमी है, क्युं हमेशा खिन्न रहती हो, खाओ – पियो अच्छे से रहो, मौज मस्ती करो। रोज खिन्नता व उदासी से ऐसे उत्तर न दिया करो। इस पर छोटी बहु ने कहा – मां जी उदासी की तो बात ही है, ससुर जी द्वारा संजोए धन – दौलत का ही खाना खा रहे है और कपड़े पहन रहे है, तो सब बासी ही हुआ न। आप ही सोंचो ये धन – दौलत कब तक काम आएगा। कभी न कभी तो खत्म होगा ही, और आपके बेटे तो कभी काम करना, मेहनत करना जानते ही नही फिर आगे की जिंदगी और आने वाली पीढ़ी का क्या होगा ? बिना मेहनत के कैसे सब अच्छा लगेगा ? जब सब लोग खतरे में आ जाएंगे तब आप क्या करेंगी, किसको दोष देंगी।
छोटी बहु की बाते सुनकर जमींदार की पत्नी को सब समझ आ गया, दूसरे ही दिन से वो अपने बेटो को कुछ न कुछ काम देने लगी, आगे की जिम्मेदारी समझाने लगी और ये भी नियम रखा कि जो कार्य नही करेगा उसे कुछ नही मिलेगा। जमींदार के सब बेटे धीरे – धीरे काम सीख गए। अब उसके धन – दौलत में बढ़ोत्तरी होने लगी। सब खुशी से व सुखी से रहने लगे।
जमींदार के तीन बेटे थे, जमींदार ने उनको कभी किसी बात के लिए समझाया नही, रोका- टोका नही ,
इसके चलते उनके तीनो बेटो की प्रवृत्ति बेहद आलसी व घुमक्कड़ हो गई थी। जमींदार ने अपने तीनो बेटो की शादी करा दी यह सोंचकर कि जिम्मेदारी आएगी लेकिन उनके बेटो के रवैये में कोई सुधार नही हुआ। अब जमींदार बहुत चितिंत रहने लगा कि उसके जाने के बाद क्या होगा लेकिन जमींदार की पत्नी को कोई चिंता नही थी क्योकि उसे लगता था कि जमींदार द्वारा संजोए हुए धन – दौलत से यह जिंदगी आराम से कट जाएगी।
एक दिन जमीदार की मृत्यु हो गई और सारी जिम्मेदारी जमींदार की पत्नी पर आ गई, लेकिन जमींदार की पत्नी तो निश्चिंत थी, उसे अपने व अपने बेटो की कोई चिंता फिक्र नही थी क्योकि उसे तो अपने पति द्वारा संजोए हुए धन – दौलत पर बड़ा गुमान था। जमींदार की पत्नी रोज रात को बहु – बेटो को अपने कमरे में बुलाकर पुछती – दिन कैसा गया, खाना, कपड़ा सब अच्छा रहा कि नही आदि। जमींदार की छोटी बहु बहुत होशियार थी, वो अपने पति व बाकी घरवालो के आलसीपन से नाखुश थी और उसने सबको सुधारने का प्रण किया। रोज की तरह जमींदार की पत्नी ने बहुओ और बेटों को अपने कमरे में बुलाया और पुछने लगी सब कैसा था, तो तीनो बेटे और दोनो बहु ने कहा – सब अच्छा था , कुशल मंगल से दिन भी निकल गए लेकिन जब छोटी बहु का उत्तर देने का समय आया तब वो बोली – मां जी बासी खाया, बासी पहना, जैसे – तैसे दिन भी कट गया। कुछ दिन तक यहीं प्रश्न – उत्तर चलता रहा। एक दिन जमींदार की पत्नी ने छोटी बहु से कहा कि – तुम्हे यहां किस चीज की कमी है, क्युं हमेशा खिन्न रहती हो, खाओ – पियो अच्छे से रहो, मौज मस्ती करो। रोज खिन्नता व उदासी से ऐसे उत्तर न दिया करो। इस पर छोटी बहु ने कहा – मां जी उदासी की तो बात ही है, ससुर जी द्वारा संजोए धन – दौलत का ही खाना खा रहे है और कपड़े पहन रहे है, तो सब बासी ही हुआ न। आप ही सोंचो ये धन – दौलत कब तक काम आएगा। कभी न कभी तो खत्म होगा ही, और आपके बेटे तो कभी काम करना, मेहनत करना जानते ही नही फिर आगे की जिंदगी और आने वाली पीढ़ी का क्या होगा ? बिना मेहनत के कैसे सब अच्छा लगेगा ? जब सब लोग खतरे में आ जाएंगे तब आप क्या करेंगी, किसको दोष देंगी।
छोटी बहु की बाते सुनकर जमींदार की पत्नी को सब समझ आ गया, दूसरे ही दिन से वो अपने बेटो को कुछ न कुछ काम देने लगी, आगे की जिम्मेदारी समझाने लगी और ये भी नियम रखा कि जो कार्य नही करेगा उसे कुछ नही मिलेगा। जमींदार के सब बेटे धीरे – धीरे काम सीख गए। अब उसके धन – दौलत में बढ़ोत्तरी होने लगी। सब खुशी से व सुखी से रहने लगे।
MORAL – मेहनत हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, मेहनत के दम पर व्यक्ति कठिन से कठिन कार्य को पुरा कर सकता है। केवल सपने देखने से या इच्छा रखने से हमारा ध्येय पुरा नही होता उसके लिए कठिन मेहनत करनी होती है। मेहनत के सहारे से हम लक्ष्य प्राप्त कर सकते है। मेहनत के बल पर व्यक्ति अपना भाग्य बना सकता है।
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About Author
Pavan Choudhary
Hi friends i have 8 years experience of marketing and sales from a sales executive to branch manager. i sale products , teach how to sale , build a team , lead a team and also manage sales office. so this is all about my experience know more about me in About us page .
4 Comments
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BAHUT ACCHA LIKHA
thanks
जबरदस्त
बहुत अच्छा