मन में सोच यदि सकारात्मक हो और कुछ कर गुजरने की ललक हो तो मंजिल पाने से हमें कोई नही रोक सकता, इस बीच लाख बाधाएं ही क्यों न आए. अब मंजिल दूर नहीं जरा कदम बढ़ाओ, चलिए इसे एक छोटी सी कहानी से समझते हैं.रायपुर के एक छोटे से गांव एक बच्चा कार्तिक नाम
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. इस कहावत की मूल कहानी इस प्रकार है – एक व्यापारी के दो बेटे थे, एक का नाम विनय व दूसरा मितेष। दोनो को व्यापारी ने खूब पढ़ाया, अच्छे संस्कार दिए। उनके दोनो बेटे तार्किक बुध्दि वाले व गुणी थे, दोनो एक – दूसरे के सच्चे
आज बच्चे, युवा, बड़े हर किसी की कल्पनाओं को एक नया रंग दे रहे है. जैसे रंगो की दूनिया में बच्चो की खुशियाँ दुगुनी हो जाती हैं ……..और हो भी क्यों न ! उनकी कल्पनीओं, प्रतिभा , विचारों और शौंको को एक खुला आकाश जो मिलता है फिर चाहे क्राफ्ट हो या क्ले, बच्चे उसमें